बुधवार, सितम्बर 18, 2024
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क्यों आत्महत्या कर रहे फ़िल्म और टीवी जगत के सितारे, चकाचौंध में ये कैसा अंधकार?

इन आत्महत्याओं के पीछे की कहानियां सिल्वर स्क्रीन की चकाचौंध से विपरीत स्याह काली और दलदल भरी हैं। उन्हें खोलने पर उसमें फिल्मी समाज की सड़ांध है। इनमें से ज्यादातर लोग दबाव, असफलता, आर्थिक उतार-चढ़ाव रिलेशनशिप समस्या के मुश्किल वक्त को खूबसूरती से पार कर जाते हैं। संयम और धैर्य से उस वक्ती ज़हरीले घूंट को पी जाते हैं। जो पी जाते हैं वे जी जाते हैं।

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गुरमेहर भल्ला | इंडिया टुमारो

फिल्म एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी की जांच सीबीआई, ईडी, बिहार और मुंबई पुलिस कर रही है। बिहार में चुनाव हैं और सुशांत के बहाने महाराष्ट्र सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मामला राजनीतिक है। लेकिन इससे जुड़ी हर दिन की ब्रेकिंग न्यूज़ से हटकर देखें तो लॉकडाउन में फिल्म और टीवी जगत से जुड़े कई लोगों ने आत्महत्या की जिनकी चर्चा तक नहीं है।

हालांकि सिल्वर स्क्रीन के लोगों का आत्महत्या करना कोई नई बात नहीं है। यदा कदा किसी ने या तो आत्महत्या की या किसी की मौत पर रहस्य बरकरार रहा। लेकिन लॉकडाउन के कम समय में जिस तरह फिल्म और टीवी इंडस्ट्री से कलाकारों की आत्महत्याओं की खबरें आ रही हैं, वह हैरान करती हैं।

किस किस ने की खुदकुशी

लॉकडाउन में सुशांत सिंह राजपूत के अलावा उनकी मैनेजर दिशा सालियान, कहानी घर घर की, क्योंकि सास भी कभी बहु थी फेम एक्टर समीर शर्मा, क्राइम पेट्रोल और लाल इश्क फेम एक्ट्रेस प्रेक्षा मेहता, आदत से मजबूर फेम एक्टर मनमीत ग्रेवाल, भोजपुरी फिल्म एक्ट्रेस अनुपमा पाठक, कन्नड़ फिल्म एक्ट्रेस चांदना वीके, तमिल फिल्म एक्टर श्रीधर और उनकी बहन कल्याणी, कन्नड़ फिल्म प्रोडयूसर कपाली मोहन, कन्नड़ टीवी एक्टर सुशील गोवड़ा ने आत्महत्या की।

वजहों की बात करें तो मुख्यतौर पर सभी की वजहें या आर्थिक तंगी रही या वे कर्ज में डूबे थे या पार्टनर ने धोखा दिया।  मनमीत ग्रेवाल, अनुपमा पाठक, श्रीधर और कल्याणी बुरी तरह से आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। प्रेक्षा मेहता ने सपने पूरे न होने को खुदकुशी की वजह बताया। कपाली मोहन ने बिज़नेस में घाटे के चलते और चांदना वीके ने ब्वॉय फ्रेंड द्वारा धोखा दिए जाने पर मौत को गले लगाया।

इससे पहले भी की गई आत्महत्याएं

इससे पहले भी फिल्म एक्ट्रेस जिया खान (2013) ,बालिका वधू फेम प्रत्यूषा बनर्जी (2016), कुशल पंजाबी (2019), फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स नफीसा जोसफ (2004) साउथ एक्ट्रेस सिल्क स्मिता (1996)। ने आत्महत्या की। गुरुदत, प्रवीण बॉबी और दिव्या भारती जैसे फिल्म कलाकारों की मौत आज तक रहस्य बनी हुई है।

फिल्म जगत में आत्महत्याओं की वजह

हालांकि आत्महत्या किसी भी समाज में आम बात है। डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है। इसका पैसे, धोखा और असफलता से कोई संबंध नहीं। आंकड़ों पर गौर करें तो पूरी दुनिया में भारत में 40 फीसदी महिलाएं आत्महत्याएं करती हैं लेकिन यह बात कभी सुर्खियां नहीं बनती है। एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से कम लोग आत्महत्या करते है लेकिन ज़ाहिर है इनकी आत्महत्या से जुड़ी खबरें टीआरपी देती हैं तो बिना सिर पैर की खबरें सुर्खियां बनती हैं।

कुछ मिसालें, जिन्हें मैंने करीब से देखा, सुना

लेकिन फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों की आत्महत्या समाज को थोड़ा हैरान तो करती है। इन आत्महत्याओं के पीछे की कहानियां सिल्वर स्क्रीन की चकाचौंध से विपरीत स्याह काली और दलदल भरी हैं। उन्हें खोलने पर उसमें फिल्मी समाज की सड़ांध है। इनमें से ज्यादातर लोग दबाव, असफलता, आर्थिक उतार-चढ़ाव रिलेशनशिप समस्या के मुश्किल वक्त को खूबसूरती से पार कर जाते हैं। अदब, संयम और धैर्य से उस वक्ती ज़हरीले घूंट को पी जाते हैं। जो पी जाते हैं वे जी जाते हैं। इस संदर्भ में फिल्म जगत से अनेकों मिसालें होंगी लेकिन जिन्हें मैंने करीब से पढ़ा और सुना है उनमें से रेखा का ज़िक्र ज़रूर किया जाना चाहिए। विवादों से इतर बात करें तो  सिम्मी ग्रेवाल ने अपने एक कार्यक्रम बहुत बेबाकी से रेखा को उनकी ज़िंदगी के बारे में पूछा था, जिसके जबाव भी रेखा ने बहुत संयम से दिए थे। रेखा की ज़िंदगी में आत्हत्या की हज़ार वजहें रही हैं लेकिन उन्होंने दिमाग के कपाट खुले रख न केवल ‘मूव ऑन’ किया बल्कि अपनी ज़िंदगी के कैनवास को सकारात्मक रंगो से भी सजाया।

रेखा के अलावा दीपिका पादुकोण और रणदीप हुड्डा ने सार्वजनिक तौर पर अपने डिप्रेशन की बात स्वीकारी है। कार्तिक आर्यन, आयुष्मान खुराना, विक्की कौशल, नवाज़ुद्दीन सिद्दकी, पंकज त्रिपाठी, राधिका आपटे, तापसी पन्नू, भूमि पेडनेकर आदि की सफलता के पीछे बहुत लंबे कड़े संघर्ष और ज़िद्द का ऐसा काला घना अंधेरा है जिसमें हाथ को हाथ भी नहीं दिखाई देता है। लेकिन तमाम परेशानियों को पीठ पर लाद यह लोग संघर्ष करने के लिए दौड़ते रहे। यह थके भी, हांफे भी, सांस भी फूली, अकेले में रोए भी लेकिन रुके नहीं।  

कार्तिक आर्यन ने एक दफा कहा कि वह कभी नहीं भूल सकते जब हर रात अकेले में फूट फूट कर रोया करते थे। पूरा पूरा दिन ऑडिशन लाइन में खड़े रहते, पैसे नहीं थे इसलिए मुंबई के बाहर बेलापुर में रहते थे। बेलापुर में रिहाइश, नवी मुंबई में कॉलेज और अंधेरी में ऑडिशन देने आते थे तो अंधेरी स्टेशन के टॉयलेट में कपड़े चेंज करते थे। हर दिन रिजेक्शन, रिजेक्शन, रिजेक्शन। ग्वालियर से आए इस लड़के को बॉलीवुड में कोई नहीं जानता था लेकिन इसके पास था तो सिर्फ मज़बूत सपना और ज़िद्द, जिसके आगे हर दिन हाथ लगने वाली असफलता बहुत बौनी थी। कार्तिक कहते हैं मेरा सपना बहुत मज़बूत था। तापसी पन्नू ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने आपको बॉलीवुड के लिए तैयार किया और बहुत कम समय में वेडिंग प्लानर का छोटा सा बिज़नेस शुरू किया और पुणे बैडमिनटन टीम खरीदी। उन्होंने बताया कि बहुत छोटे छोटे कदम चलते हुए उन्होंने यह सब किया है। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के संघर्ष से सभी वाकिफ हैं।

चकाचौंध की दुनिया का स्याह हिस्सा

1.      बॉलीवुड की दुनिया में कुछ लोग भूल जाते हैं कि शोहरत, चकाचौंध, रौशनियां, सिक्योरिटी गार्ड, मीडिया का आगे पीछे भागना हमेशा बरकरार नहीं रहता है। यहां सफलता और शोहरत की उम्र बहुत छोटी है। अमिताभ बच्चन, सलमान खान और शाहरुख खान के बाद अभी तक कोई एक ऐसा अभिनेता नहीं है जिसने फिल्म इंडस्ट्री पर लगातार राज किया हो। यहां एक रात में स्टार ज़मीन पर आ जाते हैं। जब यहां शोहरत बहुत कम वक्त के लिए है तो कुछ लोग इसे मज़बूती से स्वीकार करते हैं और कुछ नहीं कर पाते हैं।

2.      यहां के लोगों के खर्च इस कद्र होते हैं कि कोई न भी चाहे तो वह उससे बच नहीं सकता है। ग्लैमर की दुनिया है तो सर्वाइवल के ज़रूरी खर्च ही बहुत मंहगे हैं। मंहगी गाड़ियां, पार्टियों में जाने के लायक हैसियत बनाए रखना, पीआर टीम, हर तरह का नशा यह खर्च तो अलग हैं लेकिन पांव के नाखून से लेकर सिर के बाल तक को मेंटेन करने के लाखों रुपये हैं।

3.      इस हैसियत में ऐसी ऐसी चीज़ों पर पैसे खर्च करना शामिल है जिसे यहां लिखना भी मुनासिब नहीं। जब तक कमाई है तब तक खर्च होते रहते हैं लेकिन जिस दिन कमाई कम हो जाती है या रुक जाती है तो डिप्रेशन घेर लेता है। ज्यादा कमाई करने से ज्यादा टेंशन उस कमाई और स्टेट्स को बरकरार रखना होता है। यानी सस्टेनेब्लिटी एक बड़ा दबाव है।

4.       यहां काम रेफरेंस पर मिलता है। बड़े प्रोडक्शन हाउस कैंप में बंटे हुए हैं। रिलेशनशिप गड़बड़ हुआ नहीं कि काम बंद। ज़रा सी पोज़िशन हिली नहीं कि सब साथ छोड़ देते हैं। लोग अकेलेपन से घिर जाते हैं। शोहरत की बुलंदी पर हैं तो सब साथ हैं अन्यथा कोई मर भी जाए तो तीन दिन बाद पता लगता है।

5.      नेपोटिज़्म पर तो सुशात सिंह राजपूत के बहाने कई दफा बहस हो चुकी है।

6.      वर्सोवा और गोरेगांव जैसे इलाके संघर्ष करने वाले एक से एक टेलेंडेट कलाकारों से भरे हुए हैं। एक रोज़ एक मराठी वेबसीरीज़ में काम करने वाली एक्ट्रेस ने मुझे बताया कि उसका मन करता है कि वह खुदकुशी कर ले। उसने अपने व्हॉटसअप के ढेरों मैसेज दिखाए जिन्हें देखकर मुझे भी थोड़ी हैरानी हुई। मैसेज में साफ साफ लिखा है। यह ऑडिशन है और काम की शर्त ‘कॉम्प्रो’ है। कोई ऑडिशन दिए जाने के बाद कॉल आता है तो साफ बोला जाता है कि इतने पैसे हैं और यह कॉम्प्रो है। तर्क देने वालों के पास इसके पक्ष में कई तर्क होंगे लेकिन मेरा कहना है कि अगर किसी को फिल्म इंडस्ट्री में काम करना है और कॉम्प्रो नहीं कंरना है तो क्या फिल्म इंडस्ट्री में उसे काम नहीं मिलेगा?   

फिल्म-टीवी और लॉकडाउन का इसकी आर्थिकि पर असर

कोरोना की शुरूआत में जो सबसे पहले बंद हुए वह हैं सिनेमाहॉल। फिक्की फ्रेम की हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन पीरियड में सिर्फ सिनेमाहॉल को 5,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। लगभग 13,000 करोड़ रुपये का नुकसान सिर्फ बॉलीवुड इंडस्ट्री झेल चुकी है। तमाम बड़ी फिल्मों की रिलीज़ डेट या तो बढ़ा दी गई या वह ओटीटी पर रिलीज़ हुई। टीवी इंडस्ट्री की जहां तक बात करें तो वह हर दिन कमाते हैं। उन्हें रोज़ाना 3,000 रुपये से एक लाख रुपये तक मिलते हैं। कोरोना के चलते फिल्म और टीवी सभी कलाकारों की लगभग 40 फीसदी तक फीस कम हो गई है। कलाकारों के अलावा स्पॉट ब्वॉय, लाइटमैन, मेकअपमैन जैसे रोज़गार खत्म कर दिए गए हैं। भीड़ वाले सीन में कटौती हुई है। इन लोगों को रोज़ के 300 से 500 रुपये मिलते थे। लगभग 30 फीसदी स्टाफ के साथ टीवी शूटिंग शुरु हो चुकी है। लेकिन ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया (बीएआरसी) के आंकड़े बताते हैं कि भारतीय टीवी इंडस्ट्री में लॉकडाउन के बाद 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जबकि लॉकडाउन से पहले यानी 4 जनवरी से लेकर 13 मार्च तक यह ग्रोथ 37 फीसदी थी। बड़े स्टार्स को छोड़ दें तो हर फिल्म एक्टर और खासकर टीवी एक्टर और इंडस्ट्री से जुड़े लाखों लोगों का रोज़गार प्रभावित हुआ है। अगर आने वाले 6 महीने में फिल्म शूटिंग शुरू हो भी जाए तो भी फिल्म इंडस्ट्री से लाखों लोगों का रोज़गार जा चुका है। जहां पहले 100 लोगों के क्रू के साथ शूटिंग होती थी वहां अब 20 लोगों के साथ की जा रही है।

यही वजह है कि इंडस्ट्री में डिप्रेशन कम होने की बजाय और बढ़ने के आसार हैं। अकेलापन, संघर्ष, ऑडिशन की लंबी कतारें, यूज़ एंड थ्रो, नकली स्माइल, अति बाज़ारवाद इस डिप्रेशन को और बढ़ाएगा।

जब एक स्टार एक्ट्रेस ने डिप्रेशन से लड़ने के गुर बताए

पिछले साल की बात है। एक दिन 70 के दशक की स्टार एक्ट्रेस के घर जाना हुआ। प्रोफेशनल बातचीत के बाद कॉफी पीते हुए कुछ निजी बातचीत होने लगी। उन्होंने बताया कि बीते पांच साल से वह डिप्रेशन की शिकार थीं। वह कहती हैं कि मुझे अपनी बीमारी का पता चल गया था लेकिन डिप्रेशन में बेतुके काम या बिस्तर पकड़ने से अच्छा था कि मैं फौरन डॉक्टर के पास गई और इलाज शुरू करवाया।

वह अकेली रहती हैं और ताउम्र शादी नहीं की। बताती हैं कि अच्छा खाना बनाती हूं, खाती हूं।  कोई साथ हो तो बहुत अच्छा, नहीं है तो अकेले बाहर डिनर करने जाती हूं, अकेले दुनिया घूमने निकल जाती हूं, अकेले फिल्में देखती हूं। दोस्तों के साथ खूब हंसती हूं।

उन्होंने बताया कि इलाज के दौरान वह जान गई थी कि शोहरत और खूबसूरती स्थायी नहीं है, शोहरत के पहाड़ के पार ज़मीन पर उतरना होता है, सीढ़ियां चढ़कर कभी कोई ऊपर ही नहीं बैठा रह सकता है, उसे नीचे आना ही है, हर उम्र का,  हर वक्त का अपना जलवा है और हर उम्र का आनंद लेना चाहिए। वह कहती हैं कि मैं अपनी इस उम्र में इतनी खुश हूं कि मुझे वक्त का पता ही नहीं लगता। इतने सारे काम हैं। लोगों ने मुझसे पूछा कि आपने बाल डाई करने क्यों बंद कर दिए तो मैंने कहा कि बस…मैं अपनी इस उम्र के हुस्न का आनंद लेना चाहती हूं।

व्हॉट डज़ नॉट किल यू मेक्स यू….

1.      जिस अवसाद, डिप्रेशन की वह बात कर रही थीं वैसा कई लोगों को होता है। हम ‘अब’ से ज्यादा ‘तब’ में रहते हैं कि ‘फिर’ क्या होगा, ‘तब’ क्या होगा। हम अपने बच्चों के बच्चों के लिए जब धन जोड़ते हैं, हुस्न, फिगर, इसका बंगला उसका बंगला, नंबर वन, रेड कारपेट, बॉक्स ऑफिस, टीआरपी वगैरह वगैरह एक हेल्दी कंपीटीशन के लिए तो ठीक हैं लेकिन अगर यह बीमार करने लगें क्या फायदा। समझने की बात है कि नंबर टू रह गए तो क्या होगा, थोड़ा धीमे चल लिए तो क्या होगा, टविटर पर करोड़ो फॉलोअर्स नहीं होंगे तो क्या होगा, सेलिब्रिटी ट्रेनर के पास जाने की फीस नहीं होगी तो क्या होगा, नाक थोड़ी टेढ़ी है तो क्या होगा, रंग ज़रा सांवला है तो क्या होगा, इश्क में कोई धोखा दे गया तो क्या ज़िदंगी ले गया ? कहते हैं कई गुडबायज़ आपको खूबसूरत हैलोज़ से मिलवाती हैं। ज़रा सी असफलता से सब खत्म नहीं होता है बल्कि असफलता कई नए दरवाज़े खोलती है।

2.      दरअसल उम्र और अनुभव की वजह से शोहरत के जिस सिंहासन पर हम होते हैं उसे छोड़ने का हमने सोचा नहीं होता है, उसके छूट जाने पर हमारी क्या तैयारी है, हम वो तैयारी भी नहीं करते हैं। हम उस सच को भी सिरे से नकार देते हैं जो पूरी ताकत से एक सुनामी की तरह आता है और एक उम्र के बाद हमसे शोहरत का वो सिंहासन खाली करने को कहता है। हर उम्र और हर हालात में बहुत कुछ खूबसूरत सृजन करने के लिए होता है।

3.      कोई हमारे लिए कुछ नहीं करता है। जो करना है हमें ही करना है। जब तक हम खुद अपने साथ नहीं होते हैं तब तक कोई हमारे साथ नहीं होता है। दूसरों का साथ ढूंढने की बजाय पहले खुद अपने साथ हों। अपने से बात करें, खुद को संवारे, हर एंगल से अपने ऊपर काम करें।

4.      रिस्क लेने का मादा रखें। उसके लिए कॉन्फिडेंस का होना ज़रूरी है। ज्यादा से ज्यादा क्या हो जाएगा फेल हो जाएंगे, ऐसा होने पर दोबारा कर लेंगे। सबसे खराब बात फेल होना नहीं है, सबसे खराब किसी काम को न करना है। अगर कुछ करते हुए हम मरे नहीं, ज़िंदा रह गए तो दोबारा कर सकते हैं। पहली गलती से सीखेंगे। अंग्रेज़ी की एक कहावत है कि व्हॉट डज़ नॉट किल यू मेक्स यू…। कुछ भी परमानेंट नहीं है। न अच्छा वक्त और न खराब वक्त लेकिन निगेटिविटी हमें अट्रैक्ट करती है। जो हमारे पास नहीं है हमें वो याद रहता है लेकिन जो है वो याद नहीं रंहता है। हमें अच्छी बातें और अच्छी चीज़ें याद नहीं रहती हैं। इन आत्महत्या करने वालों के पास भी जीने के लिए बहुत कुछ था मरने की कोई एक वजह नहीं थी।

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